Tuesday, November 22, 2016

एक NRI की कहानी ..एक NRI की ज़ुबानी 
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मेरे भेजे पैसों से दूसरे मौज करते हैं जब 
और कुछ सालों में मुझसे हिसाब मांगते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरी खरीदी गाड़ी में घूमते हैं लोग जब 
और मैं एयरपोर्ट से घर टैक्सी में पहुँचता हूँ 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरी खरीदी वाशिंग मशीन को घिसते हैं लोग जब 
और मैं बिना प्रेस किये कपड़े पहनता हूँ 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरी खरीदी टीवी पर क्रिकेट देखते हैं लोग जब 
और मैं नौकरी से थककर अगले दिन हैडलाइन पढ़ता हूँ 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरी खरीदी वाटर फ़िल्टर का पानी पीते हैं लोग जब 
और मैं पाई-पाई जोड़कर वाटर टैप से अपनी प्यास बुझाता हूँ 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरे खरीदे सोफे और मखमल की चादर पर  सोते हैं लोग जब 
और मैं स्लीपिंग बैग में ज़मीन पर लेटकर डिग्री हासिल करता हूँ 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरे भेजे हुए सेल फ़ोन से फेसटाइम करते हैं लोग जब 
और मेरी घंटी बजते ही मिस्ड कॉल चला जाता है 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरे गिफ्ट किये लैपटॉप पर फेसबुक चैट करते हैं लोग जब 
और मुझे हैप्पी बर्थडे विश करना भूल जाते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरे लगाए वीज़ा पर फ्लाइट से सैर करने आते हैं लोग जब 
और लौटने के बाद मेरी कुर्बानियों को भूल जाते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरे पैसे से खरीदे गहनों को फ्रेंड्स में दिखाकर लोग जब 
पूछते हैं की इस बार अमेरिका से हमारे लिए कुछ नहीं लाये 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरी क्रेडिट कार्ड को स्वाइप करके शॉपिंग करते हैं लोग जब 
और मेरे कपड़ों को आउट ऑफ़ फैशन और पुराने लुक्स बताते हैं
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरे भेजे हुए फ्रिज को खाने से भर देते हैं लोग जब 
और मैं घर पहुँचकर होटल से खाना मंगवाता हूँ 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरे भेजे हुए फूलों को पाकर खुश होते हैं लोग जब 
और मेरी शादी की सालगिरह भूल जाते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

लाइफ में नौकरी-पैसा नहीं कमाने वाले लोग जब 
मेरी हालात देखकर मुझे नाकाम बताते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

फाइव स्टार होटल की पार्टी में खाकर लोग जब 
मुझे पचास के नोट का लिफाफा चुपके से थमाते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

आज तक अपने पैरों पे खड़ा न हो सके लोग जब 
मेरे किराये के मकान का मज़ाक उड़ाते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरी बचत और मेहनत का पैसा खाके लोग जब 
मुझसे एटीएम की तरह व्यवहार करते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

गाली-नाले के उठाकर महलों तक पहुंचाने के बाद लोग जब 
मुझसे बराबरी और हक़ की बातें करते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

इस साल क्रिसमस में इंडिया नहीं घूम पाने वाले लोग जब 
भूल जाते हैं कि कभी मेरे पास देश वापस जाने के पैसे नहीं थे 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

अपनी बीमारियों में मदद की उम्मीद रखने वाले लोग जब 
मेरे अस्पताल में एडमिट होने की खबर से बेफिक्र होते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

मेरी तन्खाव्ह पर जीने वाले लोग जब 
मुझसे बचत के पैसों का हिसाब माँगते हैं 
तब मैं रोता हूँ और मुझे शर्म आती है । 

पर मैं शर्मिंदा नहीं हूँ......
क्योंकि मैं जो भी हूँ... मैं खुद से हूँ 
ना किसी से उधार ली है....न किसी की उधारी खायी है 
जितना भी पाया है...अपनी लकीरें खुद बनायीं हैं 
अंतिम घड़ियाँ गिनने लगेंगे लोग जब 
शायद मेरा किया हुआ याद कर पाएंगे 

गर्व है मुझे कि  - 
मैं हर किसी से बढ़के हूँ  क्योंकि
मैं "मैं" हूँ - किसी और के टुकड़ों पे नहीं पला हूँ !

जय हिन्द !

-शैलेश मिश्र 
डैलस, टेक्सास - अमेरिका 
२२ नवम्बर २०१६ 



Friday, September 23, 2011




अन्ना, ४ आना और ३२ रुपये
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मैं अन्ना नहीं भारत सरकार का समर्थक हूँ
करोड़ों लोगों की आबादी में एक निरर्थक हूँ
जन्म से लेकर आज तक भ्रष्टाचार का प्रवर्तक हूँ

अस्पताल में जन्म लेते ही नर्स ने माँगा ४ आना
डॉक्टर ने बर्थ सर्टिफिकेट निकाली, फिर से दिया ४ आना
स्कूल प्रिंसिपल को खुश करने में लग गया ४ आना
राशन और चुनाव कार्ड में नाम जोड़ने का दाम ४ आना

कॉलेज एडमिशन और डिग्री में मेहनत लगी ४ आना
सरकारी नौकरी की सिफारिश में खर्च हो गया ४ आना
ज़मीन-जायदाद के कागज़ में चिपक गया ४ आना
प्रोमोशन और वेतन बढ़ाने में गुम हो गया ४ आना

बैंक अफसर लोन पास करता है, खाके मात्र ४ आना
ट्राफिक पुलिस लाइसेंस देता है जेब में रखके ४ आना
बिजली-फ़ोन भी काम करते हैं, उर्जावर्धक है ४ आना
ख़ूनी निर्दोष साबित होता है जब वकील की कोट में हो ४ आना

चुनाव में जीत निश्चित है जब मतदाता को मिले ४ आना
लोक सभा की सीटें भी सस्ती मिलती हैं, कीमत सिर्फ ४ आना
जात बदल दी जाती है, कम्युनिटी सर्टिफिकेट की मोहर ४ आना
धर्म बदल दिया जाता है, भूखे-प्यासे को जब मिले ४ आना

सरकार लोकपाल बिल के विरुद्ध थी, नहीं मिल रहा था उसे ४ आना
बोफोर्स, २-जी, आये-पी-एल में आज तक नहीं मिल सका हिसाब ४ आना
मरने के बाद भी मृतक को सबूत के लिए जुगाड़ चाहिए ४ आना
सरहद पर जवानों की लाशें नहीं खरीद सकीं कफ़न के लिए ४ आना

३२ रुपये से ज़्यादा कमाओ तो नहीं हो तुम गरीब या हज़ारे अन्ना
आयकर भवन को हिसाब देती है जनता अपनी हर एक पायी और ४ आना
अफ़सोस....
मैं अन्ना नहीं भारत सरकार का समर्थक हूँ
करोड़ों लोगों की आबादी में एक निरर्थक हूँ
जन्म से लेकर आज तक भ्रष्टाचार का प्रवर्तक हूँ
सरकार के बनाये कानून में भ्रष्टाचारियों का अंगरक्षक हूँ
भ्रष्टाचार का संचालक सरकार है, में तो मात्र पालनकर्ता हूँ
मैं कौन हूँ ?
मैं अन्ना नहीं, ४ आना और ३२ रुपये नोट का ...
.....लाचार "मोहनदास करमचंद गाँधी" हूँ !!!


-शैलेश मिश्र
डैलस, टेक्सास (अमेरिका)
२२ सितम्बर २०११

Saturday, June 05, 2010

वंदना......किसकी करूँ मैं ?

वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(१) उस माँ की जिसने मुझे जन्म दिया
उस बाप की जिसने मुझे अपना नाम दिया
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(२) उस स्कूल की जिसने मुझे पढना-लिखना सिखाया
उस शिक्षिका की जिसने मुझे क-ख-ग-घ सिखाया
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(३) उस डिग्री की जिसने मुझे नौकरी दिलाई
उस कॉलेज की जिसने मुझे जीना सिखाया
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(४) उस पहले बॉस की जिसने मुझे मौका दिया
उस पहले तनख्वाह की जिसने लक्ष्मी बरसाई
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(५) उस ऑफिसर की जिसने विदेश का वीसा दिलाया
उस पुलिसवाले की जिसको पासपोर्ट का घूस खिलाया
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(६) उस दोस्त की जिसने साथ-साथ ख़ुशी और ग़म बाँटा
उस दुश्मन की जिसके बिना लाइफ में मज़ा नहीं आता
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(७) उस राम की जिसने पुरुष का कर्तव्य निभाया
उस सीता की जिसने घर को स्वर्ग बनाया
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(८) उस बेटे-बेटी की जिसने माँ और बाप का दर्ज़ा दिया
उस पोते-पोती की जिसने दादा और दादी का सौभाग्य दिलाया
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(९) उस कवि-सम्मलेन की जिसने मुझे मँच दिलाई
उस श्रोता की जिसने मेरी कविता पर ताली बजायी
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

(१०) उस भगवान की जिसने हर बार मेरी प्रार्थना सुनी
उस इंसान की जिसने मेरी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी देखी
वंदना......किसकी करूँ मैं ?
वंदना......किसकी करूँ मैं ?
वंदना......किसकी करूँ मैं ?

शैलेश मिश्र
डैलस, अमेरिका
५ जून २०१०
www.saileshmishra.com

Saturday, May 01, 2010

लाइफ में वाईफ क्यों चाहिए ? पत्नी को पति क्यों चाहिए ?



लाइफ में वाईफ क्यों चाहिए ? पत्नी को पति क्यों चाहिए ? जवाब मिला - पता नहीं...!

अक्सर लोग शादी को एक रिश्तों का बंधन नहीं बल्कि हसीन सुहाना सफ़र समझते हैं | हिन्दी फिल्म की तरह एक हसीन चेहरा का सपना संजोते हैं | क्या लोग चेहरा देखकर शादी के लिए हाँ कहते हैं ? शादी से मानसिक सुख की अपेक्षा होती है या शारीरिक सुख की ? शायद दोनों ही ! हर लड़का-लड़की के मन में अपने हमसफ़र की तस्वीर छुपी होती है जो उसे रात और सुबह गुदगुदाती है, उसके चेहरे पे मुस्कान की रेखा खींच देती है और जाने-अनजाने में वो तस्वीर को हम रोज़ अजनबी लोगों के बीच तलाशते हैं | शादी के बाद लाइफ कैसी होगी, किसे पता, किसको खबर और क्यों करें चिंता ? पहले लाइफ पार्टनर तो मिले, फिर सोचेंगे | पर क्या वोह पार्टनर हम खुद चुनेंगे या परिवार हमसे चुनवायेगा ? आखिर सही पार्टनर कौन है - यह पता कैसे चलेगा ? दो-चार दिन की एक्टिंग तो कोई भी कर सकता है | शुरू में लड़केवाले और लड़कीवाले दोनों ही सभ्य-सुशील-संस्कारिक जान पड़ते हैं | किसी भी लड़की के लिए यह कहना मुश्किल है की लड़का सच में अच्छा-भला-नेक है | इसी तरह लड़के के लिए यह बताना बहुत कठिन है कि फोटो में गहने और मेकप से लदी लड़की सचमुच उसकी मन की अप्सरा जैसी सुन्दर है या नहीं | सच तो यह है कि सिर्फ लड़के की तनख्वाह से उसकी अच्छाई नहीं नापी जाती और ना ही केवल चेहरे की सुन्दरता से लड़की के मन का सौंदर्य |

शादी अजीबोगरीब खेल है, इसके नियम अनूठे होते हैं और कहानी कभी रिश्तेदारों से शुरू होती है तो कभी इन्टर्नेट चैट से | लड़के और लड़की के बीच जरूरत से ज्यादा बात हो जाए तो बात बिगड़ भी सकती है इसलिए कुछ लोग सोचते हैं कि शादी से पहले आवश्यकता से अधिक बातचीत उचित नहीं | पर एक दूसरे से मिले बिना आखिर किसी को कोई कैसे जान सकता है ? आमने-सामने नज़र पार हो जाए तो फैसला ऑन-द-स्पोट हो सकता है, पहचान प्यार में भी बदल सकती है और लव मैरेज के चांसेस ज्यादा बनते हैं | अफ़सोस कि हर कोई इतना सौभाग्यशाली नहीं होता ...| वैसे माँ-बाप अपने ज़माने की नज़र से देखते हैं - किसी को गलत तो किसी को सही लगता है | कहीं पे सगाई और रिश्ता जबरदस्ती से किया जाता है तो कहीं स्वेच्छा से वर-वधु अपने जीवन का फैसला करते हैं | जब अपनी ही चोइस से शादी करनी हो, तो क्यों ना अपने पसंद से सपनों की शहज़ादी और घुड़सवार राजकुमार एक दूसरे को खुद जानें-पहचानें ? अगर आपकी शादी हो चुकी है तो आप क्या नसीहत देना चाहेंगे ? जिसकी शादी अभी बाकी है, उसकी क्या अपेक्षाएँ होती हैं अपने पार्टनर-हमसफ़र से ?


किसी लड़के को क्यूट लड़की चाहिए तो किसी को लम्बी, और किसी को मॉडर्न गर्ल पसंद है तो किसी को घरेलु-साड़ीवाली | लड़की भी कभी शाहरुख खान और ऋतिक की उम्मीद करती है तो कभी अम्बानी जैसा करोड़पति | कोई-कोई तो मायके जैसा ससुराल पाना चाहती है | ये सब के सब बहाने हैं - दरअसल सबकी इच्छा एक होती है - जीवन-संगिनी और लाइफ पार्टनर ऐसा मिले जो उनसे बेहद प्यार करे और उनकी कमियों को नज़रंदाज़ करते हुए उन्हें दुनिया भर की खुशियाँ दे | एक दूसरे के बाहों में आने के लिए वो कुछ भी छोड़ने के लिए तैयार रहते हैं और हर पल की दूरी उन्हें तड़प का एहसास दिलाती है | जब तक ऐसा कोई लाइफ पार्टनर नहीं दिखे, लोग अपने हमसफ़र की खोज में लगे रहते हैं |

हर दिन, हर पल जीवन नया मोड़ लेती है | हमें कोई ऐसा चाहिए जो इन सब क्षणों को हमारे साथ गुज़ारे, जीवन की हर घटना का हिस्सा बनके अपना सुख-दुःख बाँट सके, थोडा हँसे-थोडा रोए | एक ऐसा कन्धा का आसरा मिले जो जन्म-जन्मान्तर तक साथ दे | विवाह बंधन में बंधने के बाद शरीर दो और प्राण एक लगे, संसार के बीच एक अपना संसार बसे - शादी ही एक ऐसी चीज़ है जो इस चाहत और ज़रुरत को पूरा कर सकती है | रास्ता कोई भी हो, मंजिल एक होनी चाहिए....शायद लोग इसीलिए शादी करते हैं ......!!!!


-शैलेश मिश्र

Sunday, April 04, 2010

देसी ना, हमके विदेशी चाहीं ...



देसी ना, हमके विदेशी चाहीं ...

अगर हम सानिया मिर्ज़ा बानी
त देसी ना, हमके विदेशी चाहीं ...
अरब के संख्या में हिन्दुस्तानी
बियाह करेके पाकिस्तानी चाहीं

अगर हम सोनिया गाँधी बानी
त देसी ना, हमके विदेशी चाहीं ...
भारत-माता के इटालियन बहू
सौंसे हिंदुस्तान नचावल चाहीं

अगर हम माधुरी दीक्षित बानी
त देसी ना, हमके विदेशी चाहीं ...
फिल्म-सितारा कवनो ना जमल
अमेरिका में नेने के नैना बानी

अगर हम मल्लिका शेरावत बानी
त देसी ना, हमके विदेशी चाहीं ...
बोलीवुड फैशन पुरान भइल साड़ी
लोसएंजेलेस हॉलीवुड में नागरिक बानी

अगर हम एम्.ऍफ़. हुसैन बानी
त देसी ना, हमके विदेशी चाहीं ...
भारत के नागरिकता नइखे मंज़ूर
क़तर में करामात देखावत बानी

अगर हम ललित मोदी बानी
त देसी ना, हमके विदेशी चाहीं ...
आई.पी.एल में फिरंगी बल्लेबाज़
चीयर लीडरो अब बिदेसी चाहीं

अगर हम इंडिया में इंडियन बानी
त देसी ना, हमके विदेशी चाहीं ...
भारत में ढ़ेर मिले घर के मुर्गी
दूर बिदेसी माटी के गमक चाहीं

--
शैलेश मिश्र
डैलस, टेक्सास (अमेरिका)
४ अप्रैल २०१०


http://www.bhojpuriexpress.com/forum/topics/2145983:Topic:88502

Monday, March 01, 2010

होली में होला मचल




होली में होला मचल !
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फगुवा बयार चलल,
नेह के अबीर उडल

गुलाल गाल में परल,
मुह में मालपुआ गलल

रंग के पिचकारी चलल,
होली के त्यौहार लगल

लोग अपना से गला मिलल
सौंसे सरीर नीला पीला रंगल

भांग ठंडई दूध में घुलल
सगरो लोगन के दिमाग घुमल

अबकी होली में जेके छुट्टी न मिलल
ओकर कंप्यूटर ईमेल से रंग बरसल

रघुबीर अवध से गईलन निकल
दुनिया में होली बहुत गईल बदल

सा रा रा रा के सुर बंधल
फगुवा गजब होली में होला मचल !

रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ...

शैलेश मिश्र
टेक्सास, अमेरिका
१ मार्च २०१०

http://www.bhojpuriexpress.com/forum/topics/2145983:Topic:83823

Tuesday, July 07, 2009

जब ज़माना बदले लगे, त पश्चिमी सभ्यता के दोष बा?

ज़माना बदले लगे, त पश्चिमी सभ्यता के दोष बा?

साडी के जगह जींस लेलस, धोती के जगह बरमुडा
छोट बाल आ फ़िल्मी चाल, फैशन चलल बाल मांगमुडा
कुँवारी के कवनो सीमा ना, ना सुहागिन के माथे सिन्दूर बा
जब ज़माना बदले लगे, त पश्चिमी सभ्यता के दोष बा...?

इन्टरनेट कनेक्शन मिल गईल, दुनिया के हर दुआर खुल गईल
चैटिंग संस्कार नया परम्परा भईल, डेटिंग सभ्यता संगे आ गईल
ना सरकार के जोश बा, ना मनई के आपन होश बा
जब लोग गलती करे, त पश्चिमी सभ्यता के दोष बा...?

अमेरिकन आइडल के नक़ल भईल, इंडियन आइडल शुरु भईल
इंग्लिश काउंटी क्रिकेट से भी आगे, आई.पी.एल के रफ़्तार बा
बैठे-बैठल फटाफट पैसा मिले, इहे सबके अंदरूनी सोच बा
जब गलत असर दिखे लगे, त पश्चिमी सभ्यता के दोष बा...?

बियाह कानून बदल गईल, गेय-लेस्बियन दंपत्ति भईल
लोग खूब नारा लगावल, संविधान के धारा हटावे के बा
चोरी-छिपे सब होत रहे, समर्थन आ विरोध के ढोंग बा
जब सम्हार में ना आवे, त पश्चिमी सभ्यता के दोष बा...?

सभ्यता-संस्कार चिरई ना हवे, पाँख लगा के कहीं पहुँच जाई
दूर के ढोल सुहावना लगे, आपन बोली-भाषा-संस्कार कहाँ टिक पायी
देश-बिदेस देखलन शैलेश त बुझलन अपने सिक्का में खोट बा
जब दोसर कवनो बहाना ना मिले, त पश्चिमी सभ्यता के दोष बा...!!


शैलेश मिश्र
(बलिया, उ.प्र / अमेरिका)
जुलाई ७, २००९

http://www.bhojpuriexpress.com/forum/topics/2145983:Topic:52310