Thursday, June 01, 2006

Sandhya - Ek Dullhan

सन्ध्या - एक दुल्हन
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दिवा की तीन लाड्ली बेटियाँ -
उषा, दुपहरिया और सन्ध्या
तीनों किसी से कम नहीं हैं


उषा लाल साडी लपेटकर
मन्दिर में घंटी टुन्टुनाती है
चिडियों से राग उधारी माँगकर
भक्ति-रस के गीत गाती है
सबकी सेवा करते-करते
बेचारी का जीवन -
पूजा में ही सिमटकर रह गया है


लेकिन कम्बख्त् दुपहरिया -
सिरचढी़, मुँहजली, मनचली
जब देखो तब-
अपना पीला दुपट्टा लहराकर
सरसों के खेतों में
आँख-मिचौनी खेलती है
गाँव की ज़िद्दी छोकरियों के साथ
हवेली की बगिया में
अंबिया चुराती फ़िरती है


इन दोनों से भली तो सन्ध्या ही है -
जो नारंगी साडी़ लपेटकर
सहमी, छुई-मुई,प्यारी सी दुल्हन लगती है
कत्थयी, नीली, बैंगनी आँचल के रंगों से
नभ के आंगन को सराबोर करती है
गायों के खुरों की धूल को मिलाकर
चाँद-तारों की अल्पना सजाती है
उसके मेंहदी रचे पावों की पायलिया
थिरक-थिरक जाती है
और फ़िर -
निशा की गोद में जाकर
सन्ध्या, मीठे सपनों में खो जाती है !

-शैलेश मिश्र
(सन्ध्या जैसी दुल्हन की खोज में :-)


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